शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

Ghazal


कल परिंदे पेड़ पर उतरे नहीं

कल गिलहरी ने भी फल कुतरे नहीं


आग से खेले खुशी के वास्ते

सरफिरे से लोग कुछ सुधरे नहीं


सब से छुप के चुपके चुपके रो लिए

ऐसे थे सदमात वो उबरे नहीं


आदमी से आदमी टूटा हुआ

पास छोड़ो दूर से गुज़रे नहीं


सारी सुविधा देख के सब नट गए

है कहाँ जो बात से मुकरे नहीं


जिंदगी के वास्ते उस दस्त में

डोरियाँ क्या दे के हम पुतरे नहीं