कल परिंदे पेड़ पर उतरे नहीं
कल गिलहरी ने भी फल कुतरे नहीं
आग से खेले खुशी के वास्ते
सरफिरे से लोग कुछ सुधरे नहीं
सब से छुप के चुपके चुपके रो लिए
ऐसे थे सदमात वो उबरे नहीं
आदमी से आदमी टूटा हुआ
पास छोड़ो दूर से गुज़रे नहीं
सारी सुविधा देख के सब नट गए
है कहाँ जो बात से मुकरे नहीं
जिंदगी के वास्ते उस दस्त में
डोरियाँ क्या दे के हम पुतरे नहीं